पायथोगोरस गणितज्ञ की जीवनी in hindi

पाईथागोरस को महान दार्शनिक और गणितज्ञ माना गया है | इनका जन्म ईसा से भी 500 वर्ष पूर्व यूनान के सामोस नामक टापू में हुआ था | यह मनुष्य जाति का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि प्राचीनकाल में लोग अपने विषय में किसी प्रकार की कोई सुचना लिखित रूप में प्रस्तुत करके नही रखा करते थे अत: उनके विषय में विस्तार से कुछ मिल पाना बड़ा असम्भव सा होता था | यही स्थिति पाईथागोरस की भी है | उस समय लिखने और संचार के साधनों का उतना विकास भी नही हुआ था और न ही शायद छपाई आदि की कोई व्यवस्था उस समय रही थी |

पाईथागोरस (Pythagoras) के समय में तो कदाचित भोज-पत्र पर भी लिखने की प्रक्रिया चल पड़ी थी अथवा नही , कहना कठिन है | बाद के लेखको को पूर्ववर्ती पीढियों द्वारा कहा सूनी के आधार पर जो कुछ सूचनाये प्राप्त हो जाया करती थी उनके आधार पर ही उन महान पुरुषो के बारे में कुछ जानकारी मिलने लगी है | पाईथागोरस उस समय उत्पन्न हुए थे जब गणित अपनी आरम्भिक अवस्था में ही था किन्तु अपनी विद्वता के कारण इस महान दार्शनिक ने एक ऐसी प्रमेय का सूत्रपात किया जो विश्वभर में प्राथमिक कक्षाओ में ही विद्यार्थियों को पढ़ा दी जाती है | इस प्रमेय का गणित में अत्यधिक प्रयोग होता है | इस प्रमेय के अनुसार किसी समकोण त्रिभुज में दो भुजाओं के वर्गो का योग तीसरी भुजाओं का योग तीसरी भुजा के वर्ग के बराबर होता है |

किसी समकोण त्रिभुज में यदि एक भुजा की लम्बाई तीन सेमी हो और दुसरी भुजा की लम्बाई चार सेमी हो तो तीसरी भुजा अर्थात कर्ण की लम्बाई पांच सेमी होगी | अभिप्राय यह है कि तीन सेमी की भुजा में एक एक सेमी के नौ वर्ग होंगे और चार सेमी की भुजा में एक सेमी के सोलह वर्ग होंगे | अर्थात इन दोनों का योग 25 होता है | इस प्रकार सबसे लम्बी भुजा में 25 वर्ग होंगे अर्थात उस भुजा की लम्बाई पांच सेमी होगी | ईसा पूर्व छठी शताब्दी में यूनानी बहुत ही धनी और सभ्य जाति समझी जाती थी | समोस टापू यूनानियो के एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र के रूप में विख्यात था | स्वाभाविक है कि पाईथागोरस के पिता भी धनी वर्ग के व्यक्ति थे | पाईथागोरस को बहुत अच्छी शिक्षा दी गयी थी | स्वयं पाईथागोरस भी प्रतिभाशाली बालको में गिने जाते थे |

पाईथागोरस (Pythagoras) जब 26 वर्ष की आयु के थे वे इतने प्रतिभावान माने जाने लगे थे कि कक्षा में खड़े होकर अपने गुरुजनों से वे जो प्रश्न किया करते थे उनके उत्तर देना उनके लिए बड़ा कठिन हो जाता था | इनके प्रश्नों को सुनकर वे बगले झाँकने लगत थे | यह स्थिति देखकर उनके पिता ने उन्हें थेल्स ऑफ़ मिलेट्स की देखरेख में अध्ययन के लिए भेज दिया था | थेल्स ऑफ़ मिलेट्स के साथ ही पाईथागोरस ने अपनी विश्वविख्यात प्रमेय का आरम्भ किया और इस प्रमेय के प्रयोगात्मक प्रदर्शन भी किया | वास्तव में यदि कहा जाए तो पाईथागोरस ही वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने ज्यामितीय की प्रमेयो के लिए उत्पति प्रणाली की नीव डाली | यह भी कहा जाता है कि पाईथागोरस ने यह भी सिद्ध करके दिखाया कि किसी भी त्रिभुज के तीनो अंत:कोणों का योग दो समकोण के बराबर होता है |

पायथागोरस (Pythagoras) ने अपने अध्ययन के लिए मिस्त्र में भी अनेक वर्ष बिताये | वहां उन्होंने संगीत और गणित के बीच में संबध स्थापित करने का प्रयास किया | कई प्राचीन लेखो में प्रमाण मिलते है कि जहां उन्होंने स्वर ग्रामो पर काम किया | पचास वर्ष की आयु तक इस गणितज्ञ ने बहुत कुछ सीख लिया था | अध्ययन के अनन्तर पायथागोरस अब तक ऐसे विद्यालय की स्थापना करना चाहते थे जहां वे अपनी विद्या का विस्तार कर सके अर्थात अपने छात्रों को वह सब दे सके जो उनके पास विद्या के रूप में विद्यमान था |

ऐसा माना जाता है कि सामोस में उस समय जो शासक था वह बड़ा अत्याचारी था | किसी गुणदोष पर विचार करना उसका काम नही था | वह केवल शासन करना जानता था और वही वह चाहता भी था | पायथागोरस को इससे बड़ा कष्ट हुआ और ईसा से 532 वर्ष पूर्व वे सामोस राज्य को छोडकर इटली में जाकर बस गये | पायथागोरस ने इटली में क्रोटोने नामक स्थान पर सन 529 ईसा पूर्व में एक स्कूल की स्थापना की | उनकी प्रसिद्धि ऐसी थी कि शीघ्र ही उनके विद्यालय में 300 विद्याथी विद्याध्ययन के लिए प्रविष्ट हो गये थे | वास्तव में देखा जाए तो उनका वह विद्यालय एक प्रकार का एक धार्मिक स्थान बन गया था | उस विद्यालय के अध्येताओ को लोगो को प्रस्प्र्स समझने का परखने का अवसर प्रदान किया जाता था | उस विद्यालय में सामान्यतया: चार विषय ही मुख्य रूप से पढाये जाते थे अंकगणित , ज्यामिति , संगीत और ज्ञान |

इन विषयों के साथ ही विद्यालय में यूनानी दर्शन की शिक्षा भी प्रदान की जाती थी | पायथागोरस का यह सिद्धांत था कि मनुष्य को अपना जीवन सदा पवित्र रखना चाहिए , इस पवित्र जीवन के द्वारा ही आत्मा को शरीर के बन्धनों से मुक्त किया जा सकता है यही उनकी दृढ़ धारणा थी | पायथागोरस ने ॐ के सिद्धांत पर भी कार्य किया था | उन्हें पिरामिड धन आदि आकृतिया बनाने का ज्ञान था | पायथागोरस की मान्यता थी कि नक्षत्र वक्रगति से घुमा करते है | दिन और रात किस प्रकार होते है इस विषय में पायथागोरस ने बताया कि धरती किसी केन्द्रीय अग्नि के चारो ओर घुमती है | इसके अतिरिक्त पायथागोरस ने संगीत और गणित के मध्य भी संबध स्थापित करके बताये थे |

कालान्तर में जिन लोगो ने पायथागोरस (Pythagoras) के विचारों का अनुसरण किया था वे राजनीती के अखाड़े में कूद पड़े , यह उनके विचारों के प्रति एक प्रकार का अन्याय था | इसे दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है | उन् लोगो को जहां भी अवसर मिलता वे वहां पर अपना अधिकार जमाने का यत्न करते परिणामस्वरूप उनका पतन हो गया और जनता उनकी विरोधी हो गयी | इसी आधार पर पायथागोरस को देश से निष्कासित कर दिया गया था | 80 वर्ष की आयु में ईसा से 580 वर्ष पूर्व मेटापोंट्म इटली में उनका देहांत हो गया | उनकी मृत्यु के के 200 वर्ष बाद पायथागोरस की रोम के सीनेट में विशाल मूर्ति बनवाई और इस महान गणितज्ञ को यूनान के महानतम विद्वान एवं बुद्धिमान का सम्मान दिया गया |

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