अफ्रीका का नाम कोन नही जनता, जितना अफ्रीका गर्मी और रेगिस्थान के लिया जाना जाता है उतना ही वह की संस्कृति और आदिवासियों के लिए जानत जात है, वह की अजीबो गरीब परम्पराऔ के लिए भी जाना जाता है लेकिन क्या आप ने कभी सोचा है वेसा अपने देश मतलब भारत में हो तो जि है एक सहर गुजरात में भी है जहा आदिवासी बसते है जिसे आदिवासियों का सहर कहा जाता है ये सहर और कही नही भारत के गुजरात में है
गुजरात: सोशल मीडिया पर यूँ तो रोजाना बहुत सी अजीबो-गरीब खबरें और पोस्ट्स वायरल होती रहती हैं. भारत में ही इतने अजब-गज़ब कारनामे होते हैं, जिनके बारे में हर कोई नहीं जान पाता. आज हम आपको एक ऐसी ही अजब-गज़ब कहानी से रूबरू करने जा रहे हैं.
हम यहां आज बात करेंगे एक आदिवासी जनजाति “सिद्दी” के बारे में. जिनके पारंपरिक तौर-तरीके हमारे देश की समृद्धि और परंपरागत विरासत को आज भी आगे बढ़ा रहे हैं.
गुजरात के मशहूर ‘गिर’ जंगल के बीच बसा है इनका गांव, जिसे ‘जंबूर’ कहते हैं. इस गांव को ‘गुजरात का अफ्रीका’ भी कहा जाता है.
सिद्दी आदिवासी मूल रूप से अफ्रीका के बनतु समुदाय से जुड़े हैं. भारत में इनके आने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि आज से लगभग 750 साल पहले इन्हें पुर्तगाली गुलाम बनाकर भारत लाया गया था.
जबकि कुछ का कहना है कि जूनागढ़ के तत्कालीन नवाब एक बार अफ्रीका गये और वहां एक महिला को निकाह करके साथ भारत लाये और वह महिला अपने साथ लगभग 100 गुलामों को भी लाई.
वहीं से धीरे-धीरे इनका समुदाय जूनागढ़ में विकसित हुआ. इतिहासकारों के मुताबिक सिद्दी जनजाति भारत के साथ-साथ पाकिस्तान में भी पाई जाती है.
सिद्दी लोगों में कुछ ने इस्लाम तो कुछ ने ईसाई धर्म को अपनाया. जबकि बहुत कम संख्या में लोग हिंदू धर्म को भी मानते हैं. गुजरात के जूनागढ़ को इनका गढ़ माना जाता है, लेकिन ये कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र में भी पाये जाते हैं. आंकड़ों के मुताबिक भारत में सिद्दी समुदाय के लगभग 50 हजार लोग रह रहे हैं.
इनकी जनसंख्या न बढ़ने का प्रमुख कारण है कि इस समुदाय के लोग शादी को लेकर बड़े सख्त होते हैं. सिद्दी केवल अपने समुदाय में ही शादी करते हैं. ये किसी भी हाल में दूसरे समुदायों में शामिल नहीं होना चाहते. यही कारण है कि आज भी इनकी बनावट बिल्कुल अफ्रीकियों की तरह है.
आज भी इनकी सभ्यता-संस्कृति और नृत्य पर अफ्रीकी रीति-रिवाज की छाप स्पष्ट देखी जा सकती है. जो सभी टूरिस्ट ‘गिर’ के शेरों को देखने के लिए आते हैं, वो इनके पारंपरिक नृत्य का भी आनंद लेते हैं.
इन्हें गुजरात टूरिज्म के लिए बनी फिल्म “खुशबू गुजरात की” में भी दिखाया गया है.