राजस्थान के राजकीय वृक्ष खेजड़ी के बारे में – About Khejri the state tree of Rajasthan in hindi

खेजड़ी वृक्ष के बारे में About Khejri Tree

आज हम बात करेंगे राजस्थान के राजकीय वृक्ष खेजड़ी के बारे में जो की जयादातर रेगिस्तान में पाया जाता है खेजड़ी जिसे राजस्थान का राज्य वृक्ष भी कहा जाता है। खेजड़ी और ऊंट तो राजस्थान की शान है अगर ये रेगिस्तान में नहीं होते तो न यहां जानवर रहते, न ही आदमी बसते। दूर-दूर तक होता तो सिर्फ सनाटा होता। रेगिस्तान की सरजमी पर खड़े खेजड़ी के पेड़ सचमुच वरदान हैं।

खेजड़ी बहुत पुराना वृक्ष है। इसका उल्लेख हमारे वेद-पुराणों में भी किया गया है। संस्कृत में इसका प्राचीन नाम “समी” या “शमी” है और वनस्पतिशास्त्री इसे “प्रोसोपिस सिनेदेरिया” कहते हैं। यह पेंड़ कितना पुराना है, इसका एहसास इस तथ्य से हो जाता है कि जब पांडवों को एक वर्ष का अज्ञातवास बिताने के लिए अपनी पहचान छिपानी थी, तब उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्र, धनुष, तरकश एक खेजड़ी के वृक्ष में ही छिपाये थे।

इसकी फली सांगरी स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है। किसी जमाने में यह गरीबों का मेवा थी। आजकल सांगरी को सुखाकर बेचने वाले व्यापारी बढ़ गये हैं सो अब सूखी सांगरी सैंकड़ों रुपये किलो बिकती है और काजू-किशमिश के साथ बनी इसकी सब्जी रईसों के भोजन में शुमार होती है। सांगरी खाने से प्रोटीन भारी मात्रा में मिलती है, एसिडिटी नहीं होती है, कब्जी या मोटापा गायब हो जाता है।

इसकी पत्तियों से मिलने वाला सेल्यूलोज और लिग्निन नाइट्रोजन संतुलन बनाता है। वन्य पशु जैसे हिरण, नीलगाय, खरगोश भी खेजड़ी की फली और पत्तियों को खूब खाते हैं। खेजड़ी का पेड़ दस साल के बाद पत्ती और फलों का उत्पादन करने लगता है और दो-ढाई सौ बरस तक खूब देता है। किसानों के लिए तो खेजड़ी एक अनमोल वृक्ष है।

Origin of Khejri Tree खेजड़ी पेड़ की उत्पत्ति

खेजड़ी को सिर्फ राजस्थान में ही नही बहुत सारे देशो में भी पाया जाता है राजस्थान के अलावा खेजड़ी का पेड़ अफगानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान के बलूच और सिंध इलाकों में भी मिलता है। अपनी गहरी जड़ों के कारण ही मरु धरती की गर्भनाल से जुड़ा है और गर्मी के महीनों में जब सारी वनस्पति धूप में जल जाती है तब खेजड़ी में मार्च से जुलाई तक फल लगते है।

खेजड़ी ने हजारों साल तक रेगिस्तानी चूल्हों को ताप दी है। इसकी लकड़ी सख्त होती है इसलिए इमारती कामों से ज्यादा ईंधन के रूप में प्रयोग में लायी जाती है। इसकी पत्तियों को लोग कहते हैं और यह रेगिस्तानी पशु जैसे भेड़, बकरी और गधों का पसंदीदा भोजन है। ऊंट इसे बड़े चाव से खाते हैं।

दूसरे देशो में बोले जाने वाले खेजड़ी ट्री के नाम

  • राजस्थानी में कल्पतरु झाटी और बोझी भी कहते हैं
  • दिल्ली में जाटी
  • पंजाब व हरियाणा में जॉड़
  • गुजरात में सुमरी
  • कर्नाटक में बनी
  • तमिलनाडुं में बन्नी
  • सिन्ध में कजड़ी
  • तमिल भाषा में पेयमेय
  • बंगाली भाषा में शाईगाछ
  • सिंधी भाषा में छोकड़ा
  • विश्नोई संप्रदाय में शमी
  • स्थानीय भाषा में सीमलो

राजस्थान राज्य वृक्ष ‘ खेजड़ी ‘ ( Rajasthan State Tree Khejri )

  • दर्जा :- 31 अक्टूबर , 1983 को ।
  • 5 जून 1988 को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर खेजड़ी वृक्ष पर 60 पैसे का डाक टिकट जारी किया गया ।
  • वैज्ञानिक नाम :- प्रोसेपिस सिनरेरिया है ।
  • खेजड़ी को राजस्थान का कल्प वृक्ष , थार का कल्प वृक्ष , रेगिस्तान का गौरव आदि नामो से जाना जाता है ।
  • खेजड़ी को Wonder Tree व भारतीय मरुस्थल का सुनहरा वृक्ष भी कहा जाता है ।
  • खेजड़ी के सर्वाधिक वृक्ष शेखावाटी क्षेत्र में देखे जा सकते है ।
  • खेजड़ी के वृक्ष की पूजा विजय दशमी / दशहरे ( आश्विन शुक्ल -10 ) के अवसर पर की जाती है।
  • खेजड़ी के वृक्ष के नीचे गोगा जी व झुंझार बाबा के मंदिर बने होते है।
  • खेजड़ी की हरी फलियां सांगरी ( फल गर्मी में लगते है ) कहलाती है तथा पुष्प मींझर कहलाता है।
  • खेजड़ी कि सूखी फलियां खोखा कहलाती है। वैज्ञानिको ने खेजड़ी जे वृक्ष की आयु पांच हजार वर्ष बताई है ।
  • राज्य में सर्वाधिक प्राचीन खेजड़ी के दो वृक्ष एक हजार वर्ष पुराने मांगलियावास गांव ( अजमेर ) में है ।
  • मांगलियावास गांव में हरियाली अमावस्या (श्रावण ) को वृक्ष मेला लगता है।
  • खेजड़ी के वृक्ष को सेलेस्ट्रेना व ग्लाइकोट्रमा नामक कीड़े नुकसान पंहुचा रहे है।
  • बीकानेर के शासकों द्वारा प्रतीक चिन्ह के रूप रूपये में खेजड़ी के वृक्ष को अंकित करवाया।
  • खेजड़ी के लिए प्रथम बलिदान अमृता देवी बिश्नोई ने 1730 में 363 लोगो के साथ जोधपुर के खेजड़ली ग्राम या गुढा बिश्नोई गांव में भाद्रपद शुक्ल दशमी को दिया।
  • भाद्रपद शुक्ल दशमीको विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला खेजड़ली गांव में लगता है ।
  • बिश्नोई सम्प्रदाय के द्वारा दिया गया यह बलिदान साका या खड़ाना कहलाता है।
  • इस बलिदान के समय जोधपुर का राजा अभयसिंह था । अभयसिंह के आदेश पर गिरधर दास के द्वारा 363 लोगों की हत्या की गई ।
  • खेजड़ली दिवस प्रत्येक वर्ष 12 सितंबर को मनाया जाता है।

खेजड़ी के बारे में रोचक जानकारी Interesting facts about the Khejri

  • थार रेगिस्तान में उगने वाली वनस्पतियों में खेजड़ी का वृक्ष एक अति महत्वपूर्ण वृक्ष है|
  • यह थार निवासियों की जीवन रेखा कहलाती है|
  • इसकी सांगरी (फली) बहुत पोष्टिक व स्वादिष्ट होती है।
  • खेजड़ी की पकी सांगरियों में औसतन 8-15 प्रोटीन, 40-50 प्रतिशत कार्बोहाइडे्रट, 8-15 प्रतिशत शर्करा, 8-12 प्रतिशत रेशा, 2-3 प्रतिशत वसा, 0.4-0.5 प्रतिशत कैल्सियम, 0.2-0.3 प्रतिशत लौह तत्व तथा अन्य सुक्ष्म तत्व पाये जाते हैं जोकि मानव व पशुओं के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही गुणकारी हैं|
  • खेजड़ी से उच्च कोटि की गुणवत्ता वाली लूंग (पित्तयाँ) प्राप्त होती हैं जो राजस्थान के शुष्क क्षेत्रें में पशुपालन का मुख्य आधार है
  • यहां के स्थानीय लोग किसी भी शुभअवसर / त्योहार/ विवाह, आदि पर खेजड़ी की सांगरी की सब्जी बनाना अति उत्तम मानते है|
  • इसकी लकड़ी से ईमारती फर्नीचर भी बनाये जाते है|
  • इसकी लकड़ी स्थानीय लोगो के लिए ईधन का मुख्य स्त्रेंत है|
  • शमी वृक्ष को खेजड़ी या सांगरी नाम से भी जाना जाता है।
  • अंग्रेजी में शमी वृक्ष प्रोसोपिस सिनेरेरिया के नाम से जाना जाता है।
  • वेदों एवं उपनिषदों में खेजड़ी को शमी वृक्ष के नाम से वर्णित किया गया है|
  • होली दहन के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा भी है।
  • होलिका दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते लूट कर लाने की प्रथा है जो स्वर्ण का प्रतीक मानी जाती है।
  • पांडवों द्वारा अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाए जाने के उल्लेख मिलते हैं।
  • इसी प्रकार लंका विजय से पूर्व भगवान राम द्वारा शमी के वृक्ष की पूजा का उल्लेख मिलता है।

खेजड़ी आन्दोलन

ये तो आप ने पड़ा ही होगा सन् 1730 की भाद्रपद सुदी दशमी के दिन खेजड़ी ग्राम में खेजड़ी वृक्ष को बचाने के लिए विश्नोई समुदाय के तीन सौ तिरेसठ लोगों द्वारा किया गया बलिदान मनुष्य के प्रकृति प्रेम की अनोखी मिसाल हैं। जोधपुर नरेश अजीतसिंह के पुत्र अभयसिंह के मंत्री गिरधरदास भण्डारी के आदेश से खेजड़ी गांव में हरे पेड़ काटने जब राजा की सेना पहुंची तो खेजड़ी व आस-पास के चौरासी गांवो के विश्नोईयों ने खेजड़ी को काटने से बचाने का निश्चय कर पेड़ों से चिपटकर कुल्हाडिय़ों के वार अपने शरीर पर झेलकर अपना बलिदान कर दिया मगर पेड़ नही कटने दिया।

खेजड़ी के लिये किये गये इस बलिदान में 69 महिलाओं व 294 पुरुषों ने अपना सिर कटाया था। खेजड़ी के लिए किए गए इस बलिदान का ही प्रभाव है कि आज रेगिस्तान में अनेक ऐसे गांव है जहां लोग हरे पेड़ों को नही काटते हैं। विश्नोई समाज के सुप्रसिद्ध धर्मगुरु जाम्भोजी ने हरे पेड़ नही काटने व जीव जन्तुओं के शिकार नही करने की बात कही, जिस कारण ही विश्नोई समाज का कोई भी व्यक्ति हरा पेड़ नही काटता हैं, तथा न ही जीव जन्तुओं का शिकार करता हैं। चूंकि जाम्भोजी मरूस्थली इलाकों में पैदा हुए थे इस कारण वे अच्छी तरह जानते थे कि खेजड़ी वृक्ष ही हर स्थिति में मनुष्य के लिये उपयोगी रहता हैं।

 

नोट: लेकिन आज खेजड़ी सिमट रही है। सैकड़ों साल उम्र में बुजुर्ग दरख्त नष्ट हो रहे हैं। नये पेड़ लग नहीं रहे। जिस वृक्ष ने हजारों साल से इंसान के हर दुख-सुख में साथ दिया, वह अब धीरे-धीरे बर्बाद हो रहा है। खेजड़ी बचाने की जरूरत है खेजड़ी बचेगा तो रेगिस्तान में जीवन बचेगा, यह एक बड़ा सच है।

 

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